Prakratik kheti par paramarsh

किसानों के कल्याण, उपभोक्ता स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पोषण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती के कई सामाजिक आर्थिक एवं पर्यावर संबंधी फायदे का लाभ उठाने के लिए नीति आयोग ने संबंधित हितधारकों के साथ दो-दिवसीय (29 से 30 सितंबर) राष्ट्रीय स्तर के परामर्श कार्यक्रम का आयोजन किया है।

 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए जोर देकर कहा कि सदियों से भारत में प्राकृतिक खेती की जाती रही है और उन्‍होंने देश भर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसे बढ़ावा देने के लिए बजट भी आवंटित किया है। प्राकृतिक खेती पर आंध्र प्रदेश, केरल और छत्तीसगढ़ के प्रस्तावों पर भी विचार किया गया और उनके कार्यान्वयन के लिए मंजूरी दी गई है।

 

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि अगले पांच वर्षों में राज्य में 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को प्राकृतिक खेती के दायरे में लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि गुजरात में लगभग 1.20 लाख किसानों ने चालू खरीफ सीजन के दौरान प्राकृतिक खेती को अपनाया और 5.50 लाख अन्य लोगों ने इसमें दिलचस्‍पी दिखाई। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती के कई लाभ गिनाए- प्राकृतिक खेती में इनपुट लागत लगभग 'शून्य' होती है, सिंचाई की आवश्‍यकता 60-70 प्रतिशत तक कम हो जाती है जबकि जैविक कार्बन का स्‍तर 0.5 से बढ़कर 0.9 हो जाता है। इस प्रकार की उपज के विपणन में कोई बाधा नहीं होती है। प्रीमियम गुणवत्ता वाले गेहूं का विपणन 1,900 रुपये प्रति क्विंटल की पारंपरिक कीमत के बजाय 4,000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर किया जा सकता है।

 

नीति आयोग के वीसी डॉ. राजीव कुमार ने प्राकृतिक खेती के लाभकारी पहलुओं को प्रचारित करने के लिए कृषि मंत्रालय के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रथा को स्‍वीकार करने और अपनाने की स्थिति अभी भी संक्रमणकाल में है। हालांकि, भारत प्राकृतिक कृषि को एक जन-आंदोलन के तौर पर अपनाने और विज्ञान के साथ तालमेल के जरिये इसे बढ़ावा देने के लिए तत्पर है ताकि देश शुद्ध कृषि-निर्यातक के रूप में उभर सके। नीति आयोग के सदस्य (कृषि) प्रो. रमेश चंद ने कहा कि एक नई नीतिगत वातावरण तैयार करने, उत्पाद की पहचान, मूल्य श्रृंखला और विपणन से संबंधित मुद्दों पर भविष्य की गतिविधियों  में ध्यान दिया जाएगा। नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत ने आर्थिक विकास में कृषि के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि खाद्य आपूर्ति प्रणाली में निरंतरता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक आम समझ बनाने और व्यावहारिक रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।

 

इस दो दिवसीय परामर्श कार्यक्रम में चार तकनीकी सत्रों- प्राकृतिक खेती (राष्ट्रीय एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्‍य), अखिल भारतीय स्‍तर पर प्राकृतिक खेती को अपनाना एवं सफलता की कहानियां, प्राकृतिक खेती (अपनाना एवं प्रभाव का आकलन) और प्राकृतिक खेती (किसान संगठन, अनुभव एवं चुनौतियां)- को नीति आयोग के सदस्य (कृषि) प्रो. रमेश चंद, आचार्य देवव्रत और काडसिद्धेश्वर स्वामी जी, कनेरी मठ, कोल्हापुर के नेतृत्‍व में शामिल गया है।

 

इस परामर्श के दौरान उम्‍मीद जताई गई कि प्राकृतिक कृषि को खेत स्तर पर अपनाने और उसके कार्यान्‍वयन के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण तैयार किया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि द्वारा विज्ञान केंद्रों, राज्य के कृषि विभागों, निजी क्षेत्र, सहकारी समितियों और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से विस्तार सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया जाएगा। साथ ही फसल की गुणवत्‍ता एवं उत्पादन प्रबंधन के लिए आवश्यक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि में सफलता की कहानियों/ सर्वोत्तम प्रथाओं पर एक दस्तावेज तैयार किया जाएगा।

 

इस परामर्श कार्यक्रम में केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकारियों, कृषि विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों, प्राकृतिक खेती से जुड़े ट्रस्ट, एनजीओ, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 

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