<श्रीराम मंदिर भूमि पूजन के अवसर पर प्रधानमंत्री के सम्‍बोधन का मूल पाठ पूरा एक एक शब्द पढ़े >


 


 


सियावर रामचंद्र की जय!


जय सियाराम।


जय सियाराम।


आज ये जयघोष सिर्फ सियाराम की नगरी में ही नहीं सुनाई दे रहा बल्कि इसकी गूंज पूरे विश्व भर में है। सभी देशवासियों को


और विश्व भर में फैले करोड़ों भारत भक्तों को, राम भक्तों को, आज के इस पवित्र अवसर की कोटि-कोटि बधाई।


मंच पर विराजमान यूपी की गवर्नर श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, पूज्य नृत्य गोपालदास


जी महाराज और हम सभी के श्रद्धेय श्री मोहन भागवत जी, ये मेरा सौभाग्य है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मुझे


आमंत्रित किया, इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने का अवसर दिया। मैं इसके लिए हृदय पूर्वक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र


ट्रस्ट का आभार व्यक्त करता हूं।


राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥


भारत, आज,भगवान भास्कर के सानिध्य में सरयू के किनारे एक स्वर्णिम अध्याय रच रहा है। कन्याकुमारी


से क्षीरभवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक, सम्मेद शिखर


से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर से पटना साहिब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्ष्यद्वीप से लेह


तक, आज पूरा भारत,राममय है। पूरा देश रोमांचित है, हर मन दीपमय है। आज पूरा भारत भावुक भी है। सदियों का इंतजार


आज समाप्त हो रहा है। करोड़ों लोगों को आज ये विश्वास ही नहीं हो रहा कि वो अपने जीते-जी इस पावन दिन को देख पा रहे


हैं।


साथियों,


बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे हमारे रामलला के लिए अब एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। टूटना और फिर उठ


खड़ा होना, सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से रामजन्मभूमि आज मुक्त हो गई है। मेरे साथ फिर एक बार बोलिए, जय


सियाराम, जय सियाराम!!!


साथियों,


हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। गुलामी के कालखंड में कोई


ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो, देश का कोई भूभाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान


न दिया गया हो। 15 अगस्त का दिन उस अथाह तप का, लाखों बलिदानों का प्रतीक है, स्वतंत्रता की उस उत्कंठ इच्छा, उस


भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह, राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक, कई-कई पीढ़ियों ने अखंड अविरत एक-निष्ठ


प्रयास किया है। आज का ये दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।


राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था। जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष


से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राममंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, मैं उन सब लोगों को आज नमन


करता हूँ, उनका वंदन करता हूं। संपूर्ण सृष्टि की शक्तियां, राम जन्मभूमि के पवित्र आंदोलन से जुड़ा हर व्यक्तित्व, जो जहां है,


इस आयोजन को देख रहा है, वो भाव-विभोर है, सभी को आशीर्वाद दे रहा है।


साथियों,


राम हमारे मन में गढ़े हुए हैं, हमारे भीतर घुल-मिल गए हैं। कोई काम करना हो, तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर


ही देखते हैं। आप भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत


हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। श्रीराम भारत की मर्यादा हैं, श्रीराम मर्यादा


पुरुषोत्तम हैं।


इसी आलोक में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर, श्री राम के इस भव्य-दिव्य मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ है। यहां आने से पहले,


मैंने हनुमानगढ़ी का दर्शन किया। राम के सब काम हनुमान ही तो करते हैं। राम के आदर्शों की कलियुग में रक्षा करने की


जिम्मेदारी भी हनुमान जी की ही है। हनुमान जी के आशीर्वाद से श्री राममंदिर भूमिपूजन का ये आयोजन शुरू हुआ है।


साथियों,


श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, हमारी राष्ट्रीय भावना का


प्रतीक बनेगा, और ये मंदिर करोड़ों-करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। ये मंदिर आने वाली


पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा, और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। इस मंदिर के बनने के बाद अयोध्या की सिर्फ भव्यता ही नहीं


बढ़ेगी, इस क्षेत्र का पूरा अर्थतंत्र भी बदल जाएगा। यहां हर क्षेत्र में नए अवसर बनेंगे, हर क्षेत्र में अवसर बढ़ेंगे। सोचिए, पूरी


दुनिया से लोग यहां आएंगे, पूरी दुनिया प्रभु राम और माता जानकी का दर्शन करने आएगी। कितना कुछ बदल जाएगा यहां।


साथियों,


राममंदिर के निर्माण की ये प्रक्रिया, राष्ट्र को जोडऩे का उपक्रम है। ये महोत्सव है- विश्वास को विद्यमान से जोड़ने का। नर को


नारायण से, जोड़ने का। लोक को आस्था से जोड़ने का। वर्तमान को अतीत से जोड़ने का। और स्वं को संस्कार से जोडऩे का।


आज के ये ऐतिहासिक पल युगों-युगों तक, दिग-दिगन्त तक भारत की कीर्ति पताका फहराते रहेंगे। आज का ये दिन करोड़ों


रामभक्तों के संकल्प की सत्यता का प्रमाण है।


आज का ये दिन सत्य, अहिंसा, आस्था और बलिदान को न्यायप्रिय भारत की एक अनुपम भेंट है। कोरोना से बनी स्थितियों के


कारण भूमिपूजन का ये कार्यक्रम अनेक मर्यादाओं के बीच हो रहा है। श्रीराम के काम में मर्यादा का जैसा उदाहरण


प्रस्तुत किया जाना चाहिए, देश ने वैसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी मर्यादा का अनुभव हमने तब भी किया था जब


माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। हमने तब भी देखा था कि कैसे सभी देशवासियों ने शांति


के साथ, सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए व्यवहार किया था। आज भी हम हर तरफ वही मर्यादा देख रहे हैं।


साथियों,


इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है। जिस तरह गिलहरी से


लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह


छोटे-छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई, जिस तरहमावले, छत्रपति वीर शिवाजी


कीस्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब-पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल


बने, जिस तरह दलितों-पिछ़ड़ों-आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधी जी को सहयोग दिया, उसी तरह


आज देशभर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का ये पुण्य-कार्य प्रारंभ हुआ है।


जैसे पत्थरों पर श्रीराम लिखकर रामसेतु बनाया गया, वैसे ही घर-घर से, गांव-गांव से श्रद्धापूर्वक पूजी शिलाएं, यहां ऊर्जा का


स्रोत बन गई हैं। देश भर के धामों और मंदिरों से लाई गई मिट्टी और नदियों का जल, वहां के लोगों, वहां की संस्कृति और


वहां की भावनाएं, आज यहां की शक्ति बन गई हैं। वाकई, ये न भूतो न भविष्यति है। भारत की आस्था, भारत के लोगों की


सामूहिकता की ये अमोघ शक्ति, पूरी दुनिया के लिए अध्ययन का विषय है,शोध का विषय है।


साथियों,


श्रीरामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया


है। श्रीराम का चरित्र सबसे अधिक जिस केंद्र बिंदु पर घूमता है, वो है सत्य पर अडिग रहना। इसीलिए ही श्रीराम संपूर्ण हैं।


इसलिए ही वो हजारों वर्षों से भारत के लिए प्रकाश स्तंभ बने हुए हैं। श्रीराम ने सामाजिक समरसता को अपने शासन की


आधारशिला बनाया था। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमानजी एवं वनवासी बंधुओं से सहयोग


और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया।


यहां तक कि एक गिलहरी की महत्ता को भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। उनका अद्भुत व्यक्तित्व, उनकी वीरता, उनकी


उदारता उनकी सत्यनिष्ठा, उनकी निर्भीकता, उनका धैर्य, उनकी दृढ़ता, उनकी दार्शनिक दृष्टि युगों-युगों तक प्रेरित करते


रहेंगे। राम प्रजा से एक समान प्रेम करते हैं लेकिन गरीबों और दीन-दुखियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। इसलिए तो


माता सीता, राम जी के लिए कहती हैं-


दीन दयाल बिरिदु संभारी


यानि जो दीन है, जो दुखी हैं, उनकी बिगड़ी बनाने वाले श्रीराम हैं।


साथियों,


जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जहां हमारे राम प्रेरणा न देते हों। भारत की ऐसी कोई भावना नहीं है जिसमें प्रभु राम


झलकते न हों। भारत की आस्था में राम हैं, भारत के आदर्शों में राम हैं! भारत की दिव्यता में राम हैं, भारत के दर्शन में राम हैं!


हजारों साल पहले वाल्मीकि की रामायण में जो राम प्राचीन भारत का पथ प्रदर्शन कर रहे थे, जो राम मध्ययुग में तुलसी, कबीर


और नानक के जरिए भारत को बल दे रहे थे, वही राम आज़ादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह


की शक्ति बनकर मौजूद थे! तुलसी के राम सगुण राम हैं, तो नानक और कबीर के राम निर्गुण राम हैं!


भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े हैं तोसदियों से ये अयोध्या नगरी जैन धर्म की आस्था का केंद्र भी रही है। राम की यही


सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है! तमिल में कंब रामायण तो तेलगू में रघुनाथ और रंगनाथ


रामायण हैं। उड़िया में रूइपाद-कातेड़पदी रामायण तो कन्नड़ा में कुमुदेन्दु रामायण है। आप कश्मीर जाएंगे तो आपको


रामावतार चरित मिलेगा, मलयालम में रामचरितम् मिलेगी। बांग्ला में कृत्तिवास रामायण है तो गुरु गोबिन्द सिंह ने तो खुद


गोबिन्द रामायण लिखी है। अलग अलग रामायणों में, अलग अलग जगहों पर राम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलेंगे, लेकिन राम


सब जगह हैं, राम सबके हैं। इसीलिए, राम भारत की ‘अनेकता में एकता’ के सूत्र हैं।


साथियों,


दुनिया में कितने ही देश राम के नाम का वंदन करते हैं, वहां के नागरिक, खुद को श्रीराम से जुड़ा हुआ मानते हैं। विश्व की


सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या जिस देश में है, वो है इंडोनेशिया। वहां हमारे देश की ही तरह ‘काकाविन’रामायण, स्वर्णद्वीप


रामायण, योगेश्वर रामायण जैसी कई अनूठी रामायणें हैं। राम आज भी वहांपूजनीय हैं। कंबोडिया में ‘रमकेर’रामायण है


, लाओ में ‘फ्रा लाक फ्रा लाम’ रामायण है, मलेशिया में ‘हिकायत सेरी राम’तो थाईलैंड में ‘रामाकेन’है! आपको ईरान


और चीन में भी राम के प्रसंग तथा राम कथाओं का विवरण मिलेगा।


श्रीलंका में रामायण की कथा जानकी हरण के नाम सुनाई जाती है, और नेपाल का तो राम से आत्मीय संबंध, माता जानकी से


जुड़ा है। ऐसे ही दुनिया के और न जाने कितने देश हैं, कितने छोर हैं, जहां की आस्था में या अतीत में, राम किसी न किसी रूप


में रचे बसे हैं! आज भी भारत के बाहर दर्जनों ऐसे देश हैं जहां, वहां की भाषा में रामकथा, आज भी प्रचलित है। मुझे विश्वास है


कि आज इन देशों में भी करोड़ों लोगों को राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने से बहुत सुखद अनुभूति हो रही होगी।


आखिर राम सबके हैं, सब में हैं।


साथियों,


मुझे विश्वास है कि श्रीराम के नाम की तरह ही अयोध्या में बनने वाला ये भव्य राममंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत


का द्योतक होगा। मुझे विश्वास है कि यहां निर्मित होने वाला राममंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा। इसलिए


हमें ये भी सुनिश्चित करना है कि भगवान श्रीराम का संदेश, राममंदिर का संदेश, हमारी हजारों सालों की परंपरा का संदेश,


कैसे पूरे विश्व तक निरंतर पहुंचे। कैसे हमारे ज्ञान, हमारी जीवन-दृष्टि से विश्व परिचित हो, ये हमारी, हमारी वर्तमान और भावी


पीढ़ियों की ज़िम्मेदारी है। इसी को समझते हुए, आज देश में भगवान राम के चरण जहां जहां पड़े, वहाँ राम सर्किट का निर्माण


किया जा रहा है!


अयोध्या तो भगवान राम की अपनी नगरी है! अयोध्या की महिमातो खुद प्रभु श्रीराम ने कही है-


जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि


यहां राम कह रहे हैं- मेरी जन्मभूमि अयोध्या अलौकिक शोभा की नगरी है। मुझे खुशी कि आजप्रभु राम की जन्मभूमि की


भव्यता, दिव्यता बढ़ाने के लिए कई ऐतिहासिक काम हो रहे हैं!


साथियों,


हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है-न्राम सदृशो राजा, प्रथिव्याम् नीतिवान् अभूत॥ यानि कि, पूरी पृथ्वी पर श्रीराम के जैसा


नीतिवान शासक कभी हुआ ही नहीं! श्रीराम की शिक्षा है-नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना॥ कोई भी दुखी न हो, गरीब न हो।


श्रीराम का सामाजिक संदेश है- प्रहृष्ट नर नारीकः,समाज उत्सव शोभितः॥ नर-नारी सभी समान रूप से सुखी हों। श्रीराम


का निर्देश है- कच्चित् ते दयितः सर्वे, कृषि गोरक्ष जीविनः। किसान, पशुपालक सभी हमेशा खुश रहें। श्रीराम का आदेश


है-कश्चिद्वृद्धान्चबालान्च, वैद्यान् मुख्यान् राघव। त्रिभि: एतै: वुभूषसे॥ बुजुर्गों की,बच्चों की, चिकित्सकों की सदैव रक्षा


होनी चाहिए। श्रीराम का आह्वान है- जौंसभीतआवासरनाई।रखिहंउताहिप्रानकीनाई॥ जो शरण में आए,उसकी रक्षा


करना सभी का कर्तव्य है। श्रीराम का सूत्र है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥ अपनी मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर


होती है। और भाइयों और बहनों, ये भी श्रीराम की ही नीति है- भयबिनुहोइन प्रीति॥ इसलिए हमारा देश जितना ताकतवर


होगा, उतनी ही प्रीति और शांति भी बनी रहेगी।


राम की यही नीति और रीति सदियों से भारत का मार्गदर्शन करती रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने, इन्हीं सूत्रों, इन्हीं मंत्रों के


आलोक में, रामराज्य का सपना देखा था। राम का जीवन, उनका चरित्र ही गांधीजी के रामराज्य का रास्ता है।


साथियों,


स्वयं प्रभु श्रीराम ने कहा है-


देशकाल अवसर अनुहारी। बोले बचन बिनीत बिचारी॥


अर्थात, राम समय, स्थान और परिस्थितियों के हिसाब से बोलते हैं, सोचते हैं, करते हैं।


राम हमें समय के साथ बढ़ना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं। राम परिवर्तन के पक्षधर हैं, राम आधुनिकता के पक्षधर हैं। उनकी


इन्हीं प्रेरणाओं के साथ, श्रीराम के आदर्शों के साथ भारत आज आगे बढ़ रहा है!


साथियों,


प्रभु श्रीराम ने हमें कर्तव्यपालन की सीख दी है, अपने कर्तव्यों को कैसे निभाएं इसकी सीख दी है! उन्होंने हमें विरोध से


निकलकर, बोध और शोध का मार्ग दिखाया है! हमें आपसी प्रेम और भाईचारे के जोड़ से राममंदिर की इन शिलाओं को


जोड़ना है। हमें ध्यान रखना है,जब जबमानवता ने राम को माना है विकास हुआ है, जब जब हम भटके हैं विनाश के रास्ते


खुले हैं! हमें सभी की भावनाओं का ध्यान रखना है। हमें सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास करना है। अपने


परिश्रम, अपनी संकल्पशक्ति से एक आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है।


साथियों,


तमिल रामायण में श्रीराम कहते हैं-


कालम् ताय, ईण्ड इनुम इरुत्ति पोलाम्


भाव ये कि, अब देरी नहीं करनी है, अब हमें आगे बढ़ना है!


आज भारत के लिए भी, हम सबके लिए भी, भगवान राम का यही संदेश है! मुझे विश्वास है, हम सब आगे बढ़ेंगे, देश आगे


बढ़ेगा! भगवान राम का ये मंदिर युगों-युगों तक मानवता को प्रेरणा देता रहेगा, मार्गदर्शन करता रहेगा! वैसे कोरोना की


वजह से जिस तरह के हालात हैं,प्रभु राम का मर्यादा का मार्ग आज और अधिक आवश्यक है।


वर्तमान की मर्यादा है, दो गज की दूरी- मास्क है जरूरी। मर्यादाओं का पालन करते हुए सभी देशवासियों को प्रभु राम स्वस्थ


रखें, सुखी रखें, यही प्रार्थना है। सभी देशवासियों पर माता सीता और श्रीराम का आशीर्वाद बना रहे।


इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, सभी देशवासियों को एक बार फिर बधाई!


बोलो सियापति रामचंद्र की...जय !!!


 


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