Kisano ko krishi mantri ka patra

< बेहतर कृषि प्रबंधन से लाएं उत्तम उत्पादकता - देश के किसानों के नाम कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का पत्र - खरीफ सीजन में कैसे करें खेती >

 

प्रिय किसान भाइयों, तीन माह से देश कोरोना संक्रमण से लड़ रहा हैप्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश ने इस लड़ाई को कुशलता से लड़ा है। लॉकडाउन के चलते उद्योग-धंधे भी प्रभावित हुए, लेकिन ऐसे कठिन समय में भी कृषक बंधुओं ने पूरी जिम्मेदारी और समर्पण से अपना कार्य किया है। रबी फसलों की कटाई से लेकर उसके उपार्जन तक सब कुछ निर्बाध चला। कृषि उत्पादन देश की अर्थव्यवस्था की धुरी बन गया है। अब देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून पहुंच गया है। कई जगह बुआई हो गई है, कुछ जगह अभी बाकी है। ऐसे में खरीफ के इस सीजन में सभी ज्यादा से ज्यादा उत्पादन, बेहतर कृषि पद्धति का उपयोग करके कर सकें, इसीलिए आपके साथ ये संवाद कर रहा हूं। किसान भाइयों, खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान है। कई राज्यों में किसान धान पैदा करते हैं, इसलिए सबसे पहले बात धान की ही करते हैं। आप लोग धान की नर्सरी लगा चुके होंगे। अब जुलाई के प्रथम सप्ताह तक रोपाई कतारों में पूरी कर लें। ध्यान रहे, पौधे से पौधे और कतारों से कतारों की दूरी वैज्ञानिक सिफारिश के हिसाब से 6 से 8 इंच रखें। चूंकि, नर्सरी उगाकर धान की 10-14 दिन में रोपाई की जाती है, इसलिए बीज कम लगता है, उपज अच्छी होती है, और निराई-गुड़ाई में भी सहूलियत होती है। रोपाई से पहले पौधे को फफूंदनाशक दवा ट्राइकोडर्मा 8 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें। इसके साथ-साथ जीवाणु खाद का प्रयोग स्थिति अनुसार अवश्य करेंइस वर्ष कई क्षेत्रों में धान की सीधी बुआई भी की गई है। इससे भी सिंचाई जल एवं मानव श्रम की बचत होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई को प्राथमिकता दें। आवश्यकता पड़ने पर खरपतवारनाशी का प्रयोग भी किया जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए संस्तुत दवाओं का उपयोग करें। धान में पानी खड़ा रहने की स्थिति में नील-हरित शैवाल अथवा अजौला का प्रयोग अवश्य करें। फसल में कीट प्रबंधन के लिए नीम के तेल के प्रयोग के साथ-साथ ट्रायो-कार्ड व फिरोमेन ट्रैप का प्रयोग करना चाहिएफसल के पास में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करने से कीट नियंत्रण आसान हो जाता है। किसान भाइयों को अपने खेत के हिसाब से फसलों और उनकी किस्मों का चयन करना चाहिए, जैसे- दलहनः अरहर, मूंग, उड़द व तिलहनः सोयाबीन, तिल, मूंगफली, अरंडी की बुआई की योजना वहां बनानी चाहिए, जहां जल निकासी की समुचित व्यवस्था रहती है। साथ ही, इन्हें बोने के लिए कुंड और मेंड़ (रिज एवं फरो) विधि से बुआई करनी चाहिए। बुआई से पहले फफूंदनाशक दवा व जीवाणु खादों से बीजोपचार जरूरी काम है। दलहनी फसलों, जैसे- अरहर, मूंग, उड़द आदि में राइजोबियम/पी.एस.बी. (फास्फोरस विलायक जीवाण) के टीके से बीजोपचार करना आवश्यक है। यह ध्यान में रखें कि प्रत्येक दलहनी फसल के लिए राइजोबियम के टीके पृथक-पृथक आते हैं।

 

मृदा जांच या मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार संतुलित मात्रा में खादों और उर्वरकों का प्रयोग करें। इसमें भी देशी खाद और जीवाणु खादों को प्राथमिकता देंयह समय की मांग है, इससे उत्पादन लागत घटती है और मृदा का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। नाइट्रोजन वाले रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से कीट व बीमारियां विकराल रूप धारण कर लेती हैं। इसे ध्यान में रखकर नाइट्रोजन वाले उर्वरकों का केवल संतुलित मात्रा में प्रयोग करने के साथ-साथ पोटाश, फास्फोरस व अन्य पोषक तत्वों का प्रयोग मृदा जांच के आधार पर करना चाहिए। खेती की लागत में बचत के लिए सभी फसलों में पौषक तत्व प्रबंधन और उर्वरक का उपयोग मृदा जांच के आधार पर ही होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आपने पिछली फसल गेहूं की ली है और उसमें फास्फोरस का उपयोग किया था तो अब धान में फास्फोरस की कम मात्रा का उपयोग करे। इसी तरह, जिन खेतों में हरी खाद का उपयोग किया गया है, वहां यूरिया उपयोग को 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। पिछली ऋतु में जिन विभिन्न फसलों और स्थानों पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देखी गई है, उसे या तो उर्वरक के आधारी उपयोग या पर्णीय छिड़काव से ठीक करें, वैसे ही धान में जिंक का प्रयोग अपेक्षित है___ फसल के लिए जल प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। फसल की क्रांतिक अवस्था में यथासंभव उचित नमी बनाकर रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। अधिक वर्षा होने पर जल निकासी की उचित व्यवस्था भी बहुत जरूरी है। खेतों में नमी व खरपतवार प्रबंधन के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना अच्छा रहता है। बरसात के मौसम में खेत में मेंड़ बनाए रखना भी आवश्यक है, जिससे अधिक से अधिक पानी खेत सोख सके। प्रदेश आधारित सलाह- पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख पंजाब सीधे बोये गए धान में 130 कि.ग्रा. यूरिया/एकड़ तीन बराबर टुकड़ों में बुवाई के 4, 6 और 9 सप्ताह के बाद प्रयोग करें। फास्फोरस और पोटाश तभी दिए जाएं, जब मिट्टी की जांच में इन तत्वों की कमी पाई गई होरोपित धान में मिट्टी की जांच के अनुसार उर्वरक का प्रयोग करें। नाइट्रोजन का उपयोग पर्ण रंग चार्ट (सीएलसी) के अनुसार विवेक से करे। बासमती धान में, 55 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ तीन बार में दें, बुवाई के 3, 6 और 9 सप्ताह बाद प्रयोग करें। कपास में खरपतवार नियंत्रण के लिए 2-3 निराई ट्रैक्टर चलित कल्टीवेटर से/ ट्रैक्टर चलित रोटरी वीडर से/ त्रिफाली/व्हील हैंड हो से करें। पहली सिंचाई बुवाई के 4-6 सप्ताह बाद करेंहिमाचल प्रदेश मक्का में यूरिया की मात्रा को 2 बार में प्रयोग करें, पहला मिट्टी चढ़ाते समय व दूसरा इसके एक महीने बाद। धान में पहली सिंचाई बुवाई के 25 दिन बाद करें और बाद की सिंचाई मानसूनी वर्षा के अनुसार करें। उड़द की बुवाई 15 जुलाई तक पूरी कर दें, इसके लिए उच्च उत्पादक किस्मों यू जी 218, हिम मश 1 एवं पी बी 114 का प्रयोग निम्न व मध्य पहाडियों में तथा पालमपुर 93 का उच्च पहाडियों में (1500 औसत समुद्र तल से ऊंचाई) उपयोग करें

 

जम्मू और कश्मीर मक्का के खेत को बुवाई से 40 दिन बाद तक खरपतवारों से रहित रखें, इसके लिए पहली गुड़ाई 15 दिन पर और दूसरी 30 दिन पर करें, जहां पर कोई खरपतवारनाशी नहीं डाला है। फसल जब घुटने की ऊंचाई की हो जाए, तब मिट्टी चढ़ाएं। खरपतवार नियंत्रण हेतु फसल उगने से पहले एट्राजीन 1 किग्रा/हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर डालें और बुवाई के 30 दिन बाद एक निराई करेंलद्दाख विल्लो, पोपलर और अपरिकोट के पेड़ों के आसपास के क्षेत्र को ढूंढते रहे कि कहीं भूरी पूंछ मोथ रोयेंदार लट का तो प्रकोप नहीं है और फल वाली फसलों में कोडलिंग मोथ के लिए फेरोमेन ट्रेप लगाएं। फलदार फसलों में बोरॉन (1 ग्रा/ली की दर से) का छिड़काव करेंउत्तराखंड धान की रोपाई तराई, भाभर व मैदानी क्षेत्रों और सिंचित पहाड़ी क्षेत्रों में जून अंत से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर लें। मक्का की बुवाई मध्य जुलाई तक पूरी कर लें। पंत संकुल मक्का -3, स्वेता, बाजोरा मक्का 1, विवेक संकुल 1 और संकर किस्में है एच एम 10, एच क्यू पी एम 1, 4, पूसा एच क्यू पी एम 5, पंत संकर मक्का 1 और 4, सरताज, पी 3522 अनुमोदित किस्में हैंपॉपकॉर्न किस्में है पंत पॉप कॉर्न 1, वी एल अंबर पॉप कॉर्न और चारे के लिए मक्का की अनुमोदित किस्म अफ्रीकन टॉल है। बुवाई का समय मध्य जुलाई तक है। तराई, भाभर व निम्न तीसरे सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक मैदानी क्षेत्र में और जून का दूसरा पखवाड़ा घाटी के लिए। तराई, भाभर व पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मूंग की किस्में है पंत मूंग 2, 5 और 8 और बुवाई का समय जुलाई का अंतिम सप्ताह और अगस्त का दूसरा सप्ताह मैदानी क्षेत्र के लिए। क्षेत्र 2- राजस्थान एवं हरियाणा राजस्थान __बाजरा की बुवाई के लिए जुलाई का पहला पखवाड़ा उचित समय है लेकिन वर्षा आधारित क्षेत्रों में, बुवाई मानसून की बारिश के बाद ही की जाना चाहिए। बाजरा फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए एमपीएमएच-17, एचएचबी-117, एचएचबी-197, एचएचबी-272, एचएचबी311, एचएचबी 299 जैसी उन्नत किस्मों का चयन करें। तिल की बुवाई मानसून की पर्याप्त वर्षा के बाद जुलाई के पहले पखवाड़े में की जानी चाहिए। ग्वार की बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए एचजी-365, एचजी-563, एचजी 2-20 जैसी उन्नत किस्मों का चयन करें। सोयाबीन की बुवाई मिट्टी में उचित नमी उपलब्ध होने पर ही की जानी चाहिए। बुवाई से पूर्व राइजोबियम कल्चर, 3 ग्राम थीरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम/कि.ग्रा. बीज से बीजोपचार करेंसोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए प्रताप सोया-1, प्रताप सोया-45, प्रताप राज सोया24, आर.वी.एस.-2001-4 जैसी उन्नत किस्मों का चयन करें। मोठ, मूंग और उड़द की बुवाई शुष्क, अद्र्शुष्क, नम और उप आद्र्र क्षेत्रों में जुलाई के पहले पखवाड़े में पूरी की जा सकती है

 

हरियाणाधान की जल्दी पकने वाली किस्मों की रोपाई 25 जुलाई तक की जा सकती है। धान की सीधी बुवाई में खरपतवार प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई अतिशीघ्र की जानी चाहिए। कपास व गन्ने में नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा संस्तुत के आधार पर प्रयोग करें एवं निराई-गुड़ाई करें। रस चूसने वाले कीटों का प्रबंधन करें। धान की सीधी बुवाई वाले खेतों में जहां पौधों की संख्या कम है, वहां पुन: बीज की बुवाई करने की जरूरत है। खरपतवार की निगरानी करें और इनके प्रबंधन के लिए खरपतवारनाशियों की उपयुक्त मात्रा का प्रयोग करें। धान की सीधी बुवाई की सफलता के लिए खरपतवार प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण सस्य क्रिया हैक्षेत्र-3- उत्तर प्रदेश कृषक खरीफ फसलों में उर्वरक मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अनुशंसा के अनुसार प्रयोग करें। धान की दीर्घकालीन अवधि की किस्मों से उच्च उत्पादकता के लिए रोपाई जुलाई प्रथम सप्ताह में पूरी कर लें। मक्का, बाजरा व अरहर की अनुमोदित दीर्घकालीन अवधि की उच्च उत्पादक किस्मों और मूंग, उड़द की अल्प अवधि की किस्मों, गन्ने की अगेती, मध्य और पछेती किस्मों की बुवाई जून अंत तक पूरी कर लें, बीजोपचार करना अतिआवश्यक हैक्षेत्र -4-बिहार और झारखंड बिहार __ धान की पौधशाला तैयार करने के लिए मध्यम समय में पकने वाली किस्मों का चयन करें (राजेंद्र स्वेता, सोनम, बी पी टी 5204, रूपाली, एम टी यू - 1001) और उसके बाद कम समय में पकने वाली किस्में चुने (सबौर अर्धजल, सबौर डीप, सभागी, सी आर धान -40, तुरंता, प्रभात)बुवाई के लिए उपचारित बीज काम में लें। बीजोपचार कार्बेण्डाजिम 2.5ग्रा/कि.ग्रा. बीज + स्ट्रेपटोसायकलिन- 1ग्रा/3कि.ग्रा. बीज से करें। पौधशाला में खरपतवार नियंत्रण के लिए पाइराजोसल्फरोन एथाईल 10 प्रतिशत डब्ल्यू पी 6ग्रा./का की दर से बुवाई से 12 घंटे पहले डालें। सब्जियों की खेती के लिए उठी हुई क्यारी विधि अपनाएं ताकि अतिवृष्टि में जल निकासी हो सकें। ऊंची भूमि के लिए अरहर की नरेंद्र अरहर -1, मालवीय अरहर (एम ए एल -13), पूसा -9, किस्मों को अपनाकर उच्च उत्पादन लिया जा सकता है। झारखंड ऊँची भूमि में धान की सीधी बुवाई वंदना, वीरेंद्र, अंजलि, सहभागी आदि किस्मों से पूरी करें। कृषकों को सलाह दी जाती है कि लंबी अवधि के धान की पौधशाला निम्न किस्मों के साथ लगाए, जैसे- स्वर्णा महसूरी, राजेंद्र महसूरी, बी पी टी - 5204 आदि जिससे जुलाई में समय पर रोपाई कर इष्टतम उत्पादन लिया जा सकें। बुवाई से पहले धान का बीजोपचार ट्राईकोडरमा विरडी 10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से या फफूंदनाशक फॉसटाइल एआई डब्ल्यूपी 2ग्रा./ली. पानी की दर से करें। धान की पौधशाला के लिए 100 कि.ग्रा. कम्पोस्ट, 2.5 कि.ग्रा. यूरिया, 6 कि.ग्रा. एस एस पी और 1.5 कि.ग्रा. एम ओ पी की अनुशंसा 400 वर्गमीटर पौधशाला क्यारी के लिए है, जिससे एक हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जा सकती हैअम्लीय मृदाओं में खेत की तैयारी के समय चूना 250-300 मात्रा कि.ग्रा./हेक्टेयर मात्रा की दर से प्रयोग करें। मक्का में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप रोकने के लिए इमामेक्टिन बेन्जोएट

 

4ग्रा./10 ली. पानी की दर से छिड़काव करें। चीनी के घोल (चीनी: पानी, 1:1 के अनुपात में) 4-5 बार आवश्यकतानुसार 150-200 मि.ली. प्रति मधुमक्खी कॉलोनी की दर से उपयोग करें। खरीफ ऋतु में सब्जियां उगाने के लिए मेड़ व नाली विधि की अनुशंसा की जाती है जिससे जल निकासी सुनिश्चित की जा सकें। चारे वाली दलहनी फसलें, जैसे- राइस बीन, लोबिया और ग्वार आदि पशुओं के लिए उगाई जा सकती है खरीफ की सामान्य चारे वाली गैर दलहन फसलों की जगह परक्षेत्र 5- पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, अंडमान और निकोबार पश्चिमी बंगाल, अंडमान और निकोबार बेहतर दाना गुणवत्ता और जल बचत के लिए धान की उच्च उपज किस्मों के 20-25 दिन की पौध की रोपाई जून के अंत तक पूरी कर लेनी चाहिए। दीर्घकालीन अवधि की धान की किस्मों में 58 कि.ग्रा. नीम लेपित यूरिया+250 कि.ग्रा. एस एस पी + 45 कि.ग्रा. एम ओ पी प्रति हेक्टयर आधारी उर्वरक और 58 कि.ग्रा. नीम लेपित यूरिया+ 23 कि.ग्रा. एम ओ पी प्रति हेक्टयर बुवाई के 30 दिन बाद छिड़ककर देना चाहिए, बाकी 58 कि.ग्रा. यूरिया बुवाई के 50 दिन बाद मृदा परीक्षण की अनुशंसा को ध्यान में रखते हुए दें। सूक्ष्म अवधि किस्मों में 44 कि.ग्रा. नीम लेपित यूरिया+190 कि.ग्रा. एस एस पी + 34 कि.ग्रा. एम ओ पी प्रति हेक्टयर आधारी उर्वरक और 44 किग्रा नीम लेपित यूरिया+ 17 कि.ग्रा. एम ओ पी प्रति हेक्टयर बुवाई के 25 दिन बाद छिड़ककर देना चाहिए, बाकी 44 कि.ग्रा. यूरिया बुवाई के 45 दिन बाद मृदा परीक्षण की अनुशंसा को ध्यान में रखते हुए दें। अमफान के दौरान समुद्री पानी से बाढयत क्षेत्रों में धान की लवण सहिष्णु किस्मों और मृदा सुधार के उपाय किए जाने चाहिए। उड़ीसा ___ खरीफ ऋतु के लिए उचित फसल किस्मों और अनुमोदित मृदा उपचार क्रियाओं को अपनाना चाहिए। कृषकों द्वारा बीजोपचार किया जाना चाहिए। उन सभी को जो फसलों, फलों, सब्जियों, अंडों और मछली उत्पादन में लगे हुए कृषकों को कृषि क्रियाओं को करने से पहले, करते समय और करने के बाद व्यक्तिगत स्वच्छता के सभी उपाय करना चाहिए और सामाजिक दूरी बनाना अत्यंत आवश्यक हैक्षेत्र-8- महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा महाराष्ट्र जहां पर्याप्त वर्षा होती है या मिट्टी में पर्याप्त नमी हो तो कपास, मक्का, सोयाबीन, अरहर, मूंग, उड़द, खरीफ ज्वार और बाजरे की फसलों की बुवाई करनी चाहिए और बीजोपचार जरूर करना चाहिए। अगेती सोयाबीन फसल की बुवाई के तुरंत बाद यदि भारी बारिश हो चुकी हो या अंकुरण अच्छा न होने की स्थिति में यदि आवश्यक हो तो सोयाबीन की बुवाई अरहर, बाजरा, मक्का के साथ सहफसली खेती के रूप में की जानी चाहिए। नारंगी, संतरे, आम, अमरूद, शरीफा, नींबू आदि की फलदार पौधों की उन्नत किस्मों के गुणवत्ता वाले संवर्धित पौधे जुलाई/अगस्त में रोपण के लिए पंजीकृत नर्सरी से खरीदे कर लगाएं।

कोंकण क्षेत्र में, भारी

 

बारिश के अनुमान के चलते किसानों को धान की 20 से 25 दिन की पौधों की रोपाई करने की सलाह दी जाती है। गुजरात रोपाई के लिए धान की नर्सरी तैयार करने और बुवाई से पूर्व अजोस्पिरुलम और पीएसबी से बीजोपचार किया जाना चाहिए। अरहर और मूंगफली में बीजोउपचार अवश्य किया जाना चाहिएआम उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि मानसून की शुरुआत से पहले 10 साल से पुराने पेडों में 100 कि.ग्रा. अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद या 50 कि.ग्रा. वर्मी-कम्पोस्ट के साथ 375 ग्राम नाइट्रोजन (0.750 कि.ग्रा. यूरिया), 160 ग्राम फास्फोरस (1 कि.ग्रा. एसएसपी) और 750 ग्राम पोटाश (1.250 कि.ग्रा. पोटाश) प्रति पेड की दर से उपयोग करें। सेमी-लूपर और कैप्सूल बेधक के प्रकोप से बचने के लिए सिंचित अरंडी की बुवाई 15 अगस्त के बाद की जानी चाहिए। खरीफ तिल की बुवाई क्रमश: 15 जून और 15 जुलाई के बीच 25-25-40 कि.ग्रा. एनपीके/हेक्टेयर के साथ की जानी चाहिए। गोवा धान की रोपाई जुलाई अंत में कर लेना चाहिए। काजू में तना और जड़भेदक प्रबंधन के उचित उपाय करना आवश्यक है। जून-जुलाई में मानसून की शुरूआत के साथ नारियल के पौधों की रोपाई अच्छी तरह से सूखी मिट्टी में की जानी चाहिए। पौधों से पौधों और लाइन से लाइन की दूरी 7.5 मीटर से 8.0 मीटर तक रखना चाहिए। क्षेत्र -9- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश सोयाबीन में कीटों के प्रकोप की उचित निगरानी की जानी चाहिए। मक्का में कीट आर्मी वार्म कीट के प्रबंधन के लिए बीजोउपचार आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। खरीफ टमाटर, बैंगन, मिर्च की नर्सरी तैयार की जा सकती है। उच्च तापमान से बचने के लिए दिन के समय में नर्सरी में ग्रीन शेड नेट का उपयोग करना चाहिए। अमरूद में शाखाओं को टूटने से बचाने के लिए 200 लीटर पानी में 2 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 1 कि.ग्रा चूने के घोल का छिड़काव किया जाना चाहिए। फलमक्खी के प्रबंधन के लिए 2 मि.ली. मैलाथियोन 10 ग्राम गुड़ प्रति लीटर पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए या फैरोमेनट्रेप भी लगाए जा सकते है। नींबू में गमोसिस, केंकर और शाखाओं को टूटने से बचाने के लिए ब्लिटॉक्स 300 ग्राम/100 लीटर पानी का छिड़काव करें। अनार में तितली के प्रबंधन के लिए साइपरमेथ्रिन 10 ईसी (100 मि.ली. पानी में 100 मि.ली.) का पहला और क्विनालफोस 200 मिली/100 लीटर पानी का दूसरा छिड़काव करें। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के प्रबंधन के लिए मल्टीप्लेक्स/250 ग्राम को 200 लीटर पानी का छिड़काव करेंछत्तीसगढ़ धान की अच्छी उपज प्राप्त करने, पानी की बचत और जड़भेदक के प्रकोप को कम करने के लिए धान की समय पर रोपाई (20 जुलाई तक) की जानी चाहिए। धान की रोपई 15 से 25 दिन के तैयार पौधों से की जानी चाहिए। जिंक की कमी के प्रबंधन के लिए 60 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट (21:) या 40 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट (33:) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करेंखरपतवार के प्रबंधन के लिए पेन्डीमेथालिन 30 ईसी 2.5 लीटर का 500 लीटर

 

पानी/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। बुवाई के दो दिन के भीतर नम मिट्टी में पानी दे। यदि फसल में मोथा खरपतवार से प्रभावित हो तो बिसफ्रीबैक 10 एससी 250 मिली/हेक्टेयर का छिड़काव किया जाना चाहिए। 20 से 25 दिन के बाद चैड़ीपश्री वाले खरपतवार होने पर 40 ग्राम अजीमसल्फरॉन 50 डीएफ या 20 ग्राम मेटासल्फ्यूरॉन मिथाइल व क्लोरिमिलन इथाइल 20 डब्ल्यूपी 350-400 लीटर पानी/हैक्टेयर का छिड़काव करें। बुवाई के बाद 4, 6 और 9 सप्ताह में तीन बराबर मात्रा में 130 किग्रा यूरिया/एकड़ से देना चाहिए। मृदा परीक्षण में यदि फास्फोरस और पोटाश पोषक तत्वों की कमी हो तो इनका भी देना चाहिए। मक्का को छत्तीसगढ़ के बस्तर पठार की उत्तरी पहाडियों में नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है। खरीफ में इसका 2.0 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र है। मक्का की एच.क्यू.पी.एम.-1, एच.क्यू.पी.एम.-7, शक्तिमान-2, शक्तिमान-4, विवेक, एच.क्यू.पी.एम.-9 प्रजातियों का प्रयोग करें। बुवाई के बाद प्रथम माह में फॉल आर्मी वार्म का प्रकोप होने पर उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए। क्षेत्र -10: आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पाण्डुचेरी आंधप्रदेश ___ खरपतवार प्रबंधन के लिए सीधी बुवाई की गई धान में 48 घंटे में 200 ग्राम पानी में बुवाई पूर्व खरपतवारनाशी प्रिटिलाइक्लोर/400 मि.ली. प्रति एकड़ या पाइरोजोसल्फ्यू रॉन इथाइल 80 ग्राम ऑक्साडियार्गल 35 ग्राम/एकड़ दर से प्रयोग करें। मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन व रासायनिक उर्वरक कम करने के लिए हरी खाद की फसलें जैसे द्वैचा या सनई की खेती करके पौधों को बुवाई के 40-45 दिन बाद मिट्टी में मिला दें। मक्का में फॉल आर्मीवार्म कीट के प्रबंधन के लिए साइंट्रानिलिप्रोलेथिओमेथोक्साम (फोर्टेनजो इओ)/0.4 मि.ली./कि.ग्रा. से बीजोपचार करना चाहिएपहले पखवाड़े में अंडे देने से बचने हेतु नीम का तेल 1500 पीपीएम/5 मि.ली./लीटर का छिड़काव करें। बुवाई के बाद फेरोमोन ट्रैप को भी लगाना चाहिए। अरहर व कपास की अच्छी फसल व पैदावार के लिए अच्छी जुताई करके जलधारय क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है। रायलसीमा क्षेत्र में मूंगफली की बुवाई कम से कम 50 मि.मी. वर्षा होने पर की जाती है। बुवाई अनथा यन्त्र से की जानी चाहिए। अरहर की बाजरा व तिलहन के साथ अन्तःवर्ती खेती की जानी चाहिए। 15 जुलाई तक कम अवधि/जल्दी पकने वाली दलहनी फसलों की बुवाई पूरी कर लेनी चाहिएतेलंगाना __ कपास की बुआई हल्की मिट्टी में 50-60 मि.मी. वर्षा और भारी मिट्टी में 60-75 मि.मी. वर्षा होने के सात दिनों की अवधि के भीतर की जानी चाहिए ताकि बेहतर अंकरण हो सके। तेलगांना सेल में कपास की उच्च पैदावार के लिए 20 जुलाई तक बुवाई कर ली जानी चाहिए। गांव में सामुदायिक आधार कपास में गुलाबी बालवॉर्म के प्रकोप को कम कर सकती है। दीर्घकालीन अवधि वाली किस्मों, जैसे बीपीटी- 5204, एमटीयू- 1061, डब्ल्यूजीएल-44 की बुआई जून अंत तक पूरी कर लेना चाहिए। जगतीलाल मशूरी, जेजीएल-384, आरएनआर-2458, जेजीएल-11727, डब्ल्यूजीएल-14 और जेजीएल-32100 जैसी मध्यम अवधि की किस्मों की 15 जुलाई तक बुवाई की जा सकती है। लघु अवधि की किस्मों जैसे आरएनआर-15048, जेजीएल3844, कुनाराम राइस-1, जेजीएल-1798 और नेल्लोर मशूरी को जुलाई अंत तक बुवाई की जा सकती है। अरहर की 15 जुलाई तक बुवाई के लिए डब्ल्यू आरजी-65, टीडीआरजी-4, पीआरजी-176,

 

आरजी-93, डब्ल्यू आईसीपीएल-8863, आईसीपीएल-87119, आईसीपीएच-2740, डब्ल्यू और रुक्रत्र-41 किस्मों का चयन करेंआरजी - 97 तमिलनाडु और पुदुचेरी सुगंधित धान की जल्दी पकने वाली किस्मों का चयन करें। धान से पहले हरी खाद वाली फसलें जैसे द्वैचा या सुनई को उगाकर हरी खाद के रूप में जमीन में मिला देना चाहिए। चावल में एस.आर.आई. और मिट्टी परीक्षण आधारित उर्वरक की सिफारिश को अपनाएं। फसल के प्रारंभिक चरणों में जिंक की कमी को पूरा करें। (30 दिनों के भीतर), सामान्य मिट्टी के लिए 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट और क्षारीय मृदा के लिए 37.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट को 500 ग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर के साथ डालें। अधिक नमी की मात्रा को बनाए रखने के लिए बुवाई के बाद मेड़ बन्दी को खेत के कई भागो में बांटकर अपनाएं जिससे खेत को प्रत्येक भाग बारिश की स्थिति में मिनी कैचमेंट एरिया के रूप में कार्य करेगा ताकि उच्च उपज प्राप्त की जा सके और मूंगफली को सूखे से बचाया जा सकेक्षेत्र-11: कर्नाटक और केरल कर्नाटक जिन क्षेत्रों में कपास, अरहर, मक्का और धान की बुवाई अभी तक नहीं की गई है, वहां बुवाई की जा सकती है। अरहर के बीजों को ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुवाई से पहले (देरी से बुवाई के तहत) उपचारित करें। मूंगफली, अरहर के बीजों को राइजोबियम के साथ और ज्वार और बाजरा के बीजों को अजैतोबैक्टोर व पीएसबी से बीजोपचार करें। जुलाई के दौरान बोए जाने वाले सूरजमुखी को आरएसएफएच-130 या आरएसएफएच-1887 जैसी प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग कर व बीजों का उपचार करके कली परिगलन से बचाना चाहिए। धान की बुवाई सीड ड्रिल से करें। इससे बीज, पानी, उर्वरक और ऊर्जा एवं श्रम की बचत होती है। बुवाई के 2-3 सप्ताह के भीतर खरपतवार को हटाने के लिए अंतर-खेती करें और हाथ से निराई-गुड़ाई करें। दलहनी फसलों को कीटों और तना भेदक से बचाने के लिए को कीटनाशकों का छिड़काव करें। वानस्पतिक अवस्था में, पत्ती खाने वाले कीट को नीमोईल 2 मि.ली./ली. का छिड़काव करें। जुलाई अंत में जहां भी दलहनी फसलें फूल की अवस्था में हो, वहां पल्स मैजिक/8 ग्राम प्रति ली. पानी का एक छिड़काव करें। प्याज उत्पादकों को जलभराव से संबंधित समस्याएं कम करने के लिए पाली बनाकर बुवाई करनी चाहिए। नए लगाए बागवानी पौधों को तेज हवा से होने वाले नुकसान से संरक्षत किया जाना चाहिए। किसानों को बंजर भूमि में नीम, सुबबुल, इमली, बेर, जामुन, शरीफा और सागौन आदि वन वृक्ष के पौधे की रोपाई करना चाहिए। कॉफी पत्ती रोग के प्रबंधन के लिए 0.5: ओ बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें और उकठा रोग और काली मिर्च में बहा देने वाले स्पाइक के प्रबंधन के लिए 1: बोर्डो मिश्रण या 3 मि.ली. ध्र पोटेशियम फॉस्फॉनेट का 1: स्प्रे करें। अदरक में रोगनिरोधी स्प्रे के रूप में गीला करने वाले एजेंट के साथ 1: बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें। आय बढ़ाने के लिए की केला/कोका/काली

 

मिर्च/रतालू के साथ मिश्रित खेती की जा सकती है। सुपारी के पौधों की कोलोरोगा, फल गिरने, शीर्षारंभी क्षय और पीलेपन से बचाने के लिए पौध सरंक्षण उपायों का प्रयोग करें। केरल मसालों और वृक्षारोपण फसलों में मिट्टी की सतह और उप सतह क्षितिज में मानसून वर्षा जल संरक्षण किया जाना चाहिए। मिट्टी की गहरी उप सतह परतों में अम्लता का प्रबंधन करने के लिए पारंपरिक मिट्टी के मिश्रण के साथ जिप्सम मिश्रण करके मिट्टी की अम्लता का प्रबंधन करें। शुष्क/गीले क्षेत्रों में धान की सीधी बुवाई के खेतों में मिट्टी की अम्लीयता के अलावा, अधिमानत चूना या डोलोमाइट / 2 कि.ग्रा./सेंटीमीटर के रूप में प्रारंभिक जुताई के साथ देना चाहिए। दो सप्ताह के बाद अगली जुताई के दौरान गोबर की खाद 2 टन/एकड़ का प्रयोग करे जो धान आधारित फसल प्रणाली की उत्पादकता को बढ़ाएगा। __ बीज की मात्रा और खरपतवार को बचाने के लिए कस्टम हायरिंग केंद्रों की सुविधाओं का लाभ उठाएं और कोनो वीडर/पावर वीडर का उपयोग करें। बुवाई/रोपण के बाद 20 दिनों के भीतर कम से कम एक बार हाथ से निराई-गुड़ाई किसानों के लिए किफायती होगी लेकिन हर्बिसाइड्स का आवश्यकता के अनुरूप प्रयोग किया जा सकता है। जून के दौरान लगाए गए काली मिर्च के पौधो को तेज हवा से होने वाले नुकसान से बचाया जाना चाहिए। यदि रोपण के समय 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा युक्त गोबर की खाद/प्रति गड्ढे न दी गई तो अवश्य प्रयोग करें। नारियल के बगीचे में, पौधे के आधार से 2.0 मीटर त्रिज्या के बेसिन तक पोषक तत्वों की दूसरी मात्रा सितंबर-अक्टूबर में दी जानी है। कठोर मृदा में साधारण नमक/500 ग्राम प्रति पौधे प्रयोग करें। जलभराव की से बचाकर भिण्डी, लोबिया, खीरा, करेला, लौकी, कद्दू, तुरई और अन्य सब्जियों की खेती की जा सकती है। किसान भाइयों, कृषि में बेहतर प्रबंधन से हम उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि समय पर योजना बनाएं, उचित निर्णय लें और खेत में उसे लागू करें। खरीफ के सीजन में हम सभी को प्रचुर अन्न का उत्पादन करना है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना कृषि और गांवों को केंद्र में रखकर की है। प्रधानमंत्री जी ने नारा दिया है, जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान और जय अनुसंधान। वर्तमान परिस्थितियों में, कृषक महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। कृषि उत्पादन बढ़ाकर न केवल समृद्धि के द्वार आप अपने परिवार के लिए खोलेंगे बल्कि राष्ट्र के प्रति भी अपने दायित्व का निर्वहन करेंगे। आपका साथी, (नरेंद्र सिंह तोमर) मंत्री, कृषि एवं किसान कल्याण

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